NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 4 मनुष्यता - मैथिलीशरण गुप्त 


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NCERT Solutions for Chapter 4 मैथिलीशरण गुप्त - मनुष्यता (Manushyata- Maithilisharan Gupt)

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मैथिलीशरण गुप्त (Maithilisharan Gupt) 1886-1964

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  • MCQ for मैथिलीशरण गुप्त - मनुष्यता Class 10 Hindi

Topics Covered

(क) प्रश्नोत्तर 

(ख) भाव स्पष्ट

NCERT Solutions for Chapter 4 मैथिलीशरण गुप्त - मनुष्यता Class 10 Hindi प्रश्नोत्तर

क. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

1. कवि ने कैसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है?

उत्तर

मनुष्य जीवन नश्वर है और प्रत्येक मनुष्य की मृत्यु निश्चित है; लेकिन जो व्यक्ति अपने जीवनकाल में परोपकार और भलाई वाले कार्य करता है, उसे मरणोपरांत भी याद किया जाता है। जो मनुष्य अपना जीवन दूसरों की भलाई मे लगा देता है, उस व्यक्ति को इतिहास के पन्नों में जगह मिलती है और प्रस्तुत कविता में कवि ने ऐसी मृत्यु को ही सुमृत्यु कहा है। ऐसे व्यक्तियों का गुणगान हर तरफ होता है और स्वयं धरती भी उनकी कृतज्ञ होती है।

2. उदार व्यक्ति की पहचान कैसे हो सकती है?

उत्तरउदार व्यक्ति दूसरों की भलाई करता है और अपना जीवन दूसरों के हित व पुण्य में ही लगा देता है। उदार व्यक्ति सबके प्रति करुणा, उपकार, प्रेम व सहानुभूति की भावना रखता है और उसका मन-मस्तिष्क हमेशा दूसरों की भलाई के लिए तत्पर रहता है। एक उदार व्यक्ति दूसरों के भले के लिए अपने निजी स्वार्थ को भी त्याग देता है। ऐसे लोगों को मृत्यु के बाद भी याद किया जाता है और इतिहास के पन्नों पर इनको एक अलग स्थान दिया जाता है। स्वयं धरती भी ऐसे मनुष्य की कीर्ति का गुणगान गाती है और उनकी आभारी होती है।


3. कवि ने दधीचि, कर्ण, आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर ‘मनुष्यता’ के लिए क्या संदेश दिया है?

उत्तर

कवि ने दधीचि, कर्ण, आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर परोपकार, भलाई और बलिदान का संदेश दिया है। महान दधीचि ने देवताओं की रक्षा के लिए अपनी हड्डियाँ दान कर दी थी, कर्ण ने अपना रक्षा-कवच दान दे दिया, भूख से व्याकुल होते हुए भी रंतिदेव ने अपना भोजन-थाल किसी और को दे दिया था और उशीनर ने एक कबूतर की जान बचाने के लिए स्वयं के शरीर का माँस दे दिया था। मनुष्य का शरीर अनित्य और नश्वर है, इसका नाश निश्चित है; इसलिए मनुष्य को इसका मोह नहीं रखना चाहिए और दूसरों के हित व चिंतन में अपने जीवन का बलिदान करने में ही मनुष्य के जीवन की सार्थकता है।


4. कवि ने किन पंक्तियों में यह व्यक्त किया है कि हमें गर्व-रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए?

उत्तर

रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में,
सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।
अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं,
दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।


5. ‘मनुष्य मात्र बंधु है’ से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

इस पंक्ति का आशय है कि सभी मनुष्य एक-दूसरे के भाई-बंधु है और एक समान है। ईश्वर ने सभी मनुष्य को एक समान बनाया है और हम सभी उनकी संतान है। इसलिए सबको मिल-जुल कर रहना चाहिए, एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति और प्रेम की भावना होनी चाहिए एवं एक दूसरे का दुख बांटना चाहिए। इस धरती पर केवल मनुष्य ही ऐसा जीव है जिसमें भावनाओं को समझने की क्षमता है और जिसे बंधुत्व का महत्व पता है। मिलजुल कर रहने में ही मनुष्यों की भलाई है।


6. कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा क्यों दी है?

उत्तर

कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा इसलिए दी है क्योंकि एकता में ही शक्ति है। सभी मनुष्यों को एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति, प्रेम, करुणा वह परोपकार की भावना रखनी चाहिए, एक-दूसरे की सहायता करनी चाहिए एवं एक-दूसरे का दुख-दर्द बांटना चाहिए। एकता में ही मानव-जाति की भलाई है और इसी से मनुष्य का अस्तित्व कायम रह पाएगा। ईर्ष्या, द्वेष, छल, कपट, आदि की भावना रखनी से मनुष्यता का अंत होता है और इससे पूरी मनुष्य-जाति संकट में पड़ जाती है।


7. व्यक्ति को किस प्रकार का जीवन व्यतीत करना चाहिए? इस कविता के आधार पर लिखिए।

उत्तर

प्रस्तुत कविता के अनुसार मनुष्य को ऐसा जीवन व्यतीत करना चाहिए, जो दूसरों के काम आए। मनुष्य को स्वार्थी न बनकर दूसरों के हित के लिए जीना चाहिए। जो मनुष्य दूसरों की भलाई और सेवा में अपना जीवन व्यतीत कर देता है, त्याग और बलिदान का जीवन जीता है और भलाई व पुण्य के कार्य के लिए अपना जीवन समर्पित कर देता है, उसकी उदारता का बखान पूरे संसार में होता है उससे इतिहास के पन्नों में जगह मिलती है और स्वयं धरती भी उसकी कृतज्ञ होती है। ऐसी मृत्यु को कवि ने सुमृत्यु कहा है।


8. ‘मनुष्यता’ कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है?

उत्तर

'मनुष्यता’ कविता के माध्यम से कवि मनुष्यता, प्रेम, एकता, दया, करुणा, परोपकार, सहानुभूति,सद्भावना और उदारता से परिपूर्ण जीवन जीने का संदेश देना चाहता है। स्वयं के लिए जीवन जीना पशु के समान जीवन जीने जैसा है। धरती पर मनुष्य एक ऐसा जीव है जो एक दूसरे की भावनाओं को समझने की क्षमता रखता है; इसलिए मनुष्य को मिल-जुलकर, एक दूसरे की सहायता करके एवं प्रेमपूर्वक रहना चाहिए। मनुष्य को मृत्यु से भयभीत नहीं होना चाहिए, दूसरों की भलाई के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए और कभी भी मन में अहंकार, छल, कपट, ईर्ष्या, द्वेष, आदि की भावना नहीं रखनी चाहिए।


NCERT Solutions for Chapter 4 मैथिलीशरण गुप्त - मनुष्यता Class 10 Hindi भाव स्पष्ट

ख. निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-

1. सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही;
वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही।
विरुद्धवाद बुद्ध का दया-प्रवाह में बहा,
विनीत लोकवर्ग क्या न सामने झुका रहा?

उत्तर

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने सहानुभूति की भावना को ही से बड़ी पूंजी बताया है। सहानुभूति से बढ़कर कोई पूंजी नहीं है, क्योंकि इसी वजह से मनुष्य को लोकप्रियता, महानता, दूसरों का प्रेम, सम्मान, आदि प्राप्त होता है। सहानुभूति व प्रेम से पूरे जग को जीता जा सकता है और इससे ईश्वर को भी वश में किया जा सकता है। जब महात्मा बुद्ध ने मनुष्यता की भलाई के लिए पुरानी परंपराओं को तोड़ा था, तब उनका भी विरोध हुआ था लेकिन जब उन्होंने प्रेम, करुणा और दया का प्रवाह किया, तब संपूर्ण मनुष्य-जाति उनके सामने नतमस्तक हो गई। इसलिए जो व्यक्ति दूसरों के प्रति सहानुभूति व प्रेम की भावना रखता है, वही सच्चा उदार व्यक्ति होता है।


2. रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में,
सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में।
अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं,
दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।

उत्तर

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने कहा है कि मनुष्य को कभी भी अपने धन व संपत्ति पर घमंड नहीं करना चाहिए और अपने धन के कारण गर्व से अंधा नहीं होना चाहिए क्योंकि धन-संपत्ति नश्वर है। मनुष्य को स्वयं को सनाथ जान कर कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए क्योंकि इस धरती पर अनाथ कोई नहीं है। ईश्वर ही सबसे बड़े दयालु, दीनबंधु है, जो हर व्यक्ति पर अपनी दया-दृष्टि बनाए रखते हैं। ईश्वर के लिए सभी मनुष्य एक समान है और उनकी कृपा सभी पर बनी रहती है, इसलिए मनुष्य को अपने मन में कभी भी अहंकार, छल, कपट, लोभ, ईर्ष्या, द्वेष, आदि को जगह नहीं देनी चाहिए।

3. चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए,
विपत्ति, विघ्न जो पड़ें उन्हें ढकेलते हुए।
घटे न हेलमेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी,
अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।

उत्तर

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने कहा है कि मनुष्य को अपने निर्धारित किए हुए पथ पर हंसते-खेलते, प्रसन्नतापूर्वक निरंतर चलते रहना चाहिए और अपने मार्ग में आने वाली बाधाओं और विपत्तियों को हटाते हुए आगे बढ़ते रहना चाहिए। परंतु इस सबमें आपसी-सामंजस्य व मेल-जोल कभी भी कम नहीं होना चाहिए और भेदभाव नहीं बढ़ना चाहिए, क्योंकि सभी मनुष्य इस अनजान सफर के सतर्क यात्री है और सभी को एक-न-एक दिन अपनी मंजिल पर पहुंचना ही है। अतः सभी को एक होकर चलना चाहिए और परस्पर भार्इचारे की भावना रखनी चाहिए।

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