NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sanchayan Chapter 2 सपनों के-से दिन – गुरदयाल सिंह


Chapter Name

NCERT Solutions for Chapter 2 सपनों के-से दिन (Sapno ke se Din)

Author Name

गुरदयाल सिंह (Gurdayal Singh)

Related Study

  • Summary of सपनों के-से दिन Class 10 Hindi
  • Important Questions for सपनों के-से दिन Class 10 Hindi
  • MCQ for सपनों के-से दिन Class 10 Hindi

Topics Covered

  • बोध प्रश्न

बोध प्रश्न 

NCERT Solutions for Chapter 2 सपनों के-से दिन Class 10 Hindi बोध प्रश्न

1. कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती- पाठ की किस अंश से यह सिद्ध होता है?

उत्तर

प्रस्तुत पाठ में लेखक बताते हैं कि उनके आधे से अधिक साथी राजस्थान या हरियाणा से आकर मंडी में व्यापार या दुकानदारी करने आए परिवारों से थे। लेखक जब छोटे थे तो उनकी बोली कम समझ पाते थे। उनके कुछ शब्द सुनकर लेखक और उनके साथियों को हंसी भी आने लगती थी। परंतु खेलते समय वे सभी एक-दूसरे की बात बहुत अच्छी तरह समझ लेते थे। पाठ का यह अंश इस बात को सिद्ध करता है कि कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती।


2. पीटी साहब की ‘शाबाश’ फौज के तमगों-सी क्यों लगती थी? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

मास्टर प्रीतम चंद स्कूल के सबसे कठोर और सख्त अध्यापक थे। स्कूल के किसी भी छात्र ने उन्हें कभी मुस्कुराते नहीं देखा था। सभी बच्चे उनके डर से कांप उठते थे। उनकी घुड़कियों के डर से सभी छात्र प्रार्थना के समय बिल्कुल सीधे और कतारबद्ध होकर खड़े रहते थे। छोटी-सी गलती पर भी वे बाघ की तरह झपट पड़ते थे और खाल खींचने पर उतारू हो जाते थे। वे छोटी कक्षाओं के बच्चों को भी कड़ी सजा देने से नहीं कतराते थे। इसीलिए स्काउटिंग के अभ्यास के दौरान बिना किसी गलती के अभ्यास पूरा करने पर पीटी साहब द्वारा दी गई ‘शाबाश’ लेखक को फौज के तमगों-सी लगती थी।


3. नयी श्रेणी में जाने और नयी कापियों और पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से लेखक का बालमन क्यों उदास हो उठता था?

उत्तर

अक्सर होशियार बच्चों को नयी श्रेणी में मिलने वाली कापियों व किताबों की गंध उत्साहित करती है। लेकिन नयी श्रेणी में जाने और नयी कापियों और पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से लेखक का बालमन उदास हो उठता था। इसके निम्नलिखित कारण थे-

  • नई श्रेणी की मुश्किल पढ़ाई का भय लेखक के बालमन को भयभीत करता था।
  • नए मास्टरों की मारपीट का भय भी इस अरुचि का एक कारण था। नए अध्यापकों के साथ-साथ पुराने अध्यापकों की भी छात्रों से उपेक्षाएं बढ़ जाती थी और उनकी आशाओं पर खरा न उतरने पर वे चमड़ी उधेड़ने को तैयार रहते थे।


4. स्काउट परेड करते समय लेखक अपने को महत्वपूर्ण ‘आदमी’ फौजी जवान क्यों समझने लगता था?

उत्तर

धोबी की धुली वर्दी, पॉलिश किए बूट और जुराब पहनकर जब लेखक स्काउटिंग की परेड करते हुए लेफ्ट-राइट की आवाज या पीटी साहब की व्हिसल से मार्च करते और राइट या लेफ्ट या अबाउट टर्न करने पर अपने छोटे-छोटे बूटों की एड़ियों पर दाएं-बाएं या एकदम पीछे मुड़कर बूटों की ठक-ठक करते हुए अकड़कर चलते थे, तब उन्हें विद्यार्थी नहीं बल्कि एक महत्वपूर्ण ‘आदमी’ फौजी जवान जैसा महसूस होता था। स्काउटिंग परेड के दौरान उनकी वेशभूषा व चाल-ढाल उन्हें फौजी होने की अनुभूति करवाती थी।


5. हेडमास्टर शर्मा जी ने पीटी साहब को क्यों मुअत्तल कर दिया?

उत्तर

जब लेखक चौथी श्रेणी में थे तब पीटी साहब उन्हें फारसी पढ़ाते थे। एक दिन उन्होंने छात्रों को याद करने के लिए एक शब्द-रूप दिया, जो वे अगले दिन मुंहजबानी सुनने वाले थे। दूसरे दिन केवल दो-तीन छात्र ही वह शब्द-रूप सुना पाए। इस पर पीटी साहब ने उन्हें झुककर पीठ ऊंची रखते हुए टांगों के पीछे से बाहें निकालकर कान पकड़ने का दंड दिया। उनकी यह बर्बरता व कठोरता देखकर हेडमास्टर शर्मा जी गुस्से से लाल हो उठे और इसी कारण उन्होंने पीटी साहब को मुअत्तल कर दिया।


6. लेखक के अनुसार उन्हें स्कूल खुशी से भागे जाने की जगह न लगने पर भी कब और क्यों उन्हें स्कूल जाना अच्छा लगने लगा?

उत्तर

लेखक को मास्टरों की पिटाई और विद्यालय की मुश्किल पढ़ाई के कारण कभी भी स्कूल खुशी से जाने की जगह नहीं लगा। लेकिन कुछ-कुछ स्थितियों में स्कूल जाना उन्हें अच्छा लगता था। इनमें से एक था- स्कूल में होने वाला स्क्वाइटिंग परेड का अभ्यास। स्काउटिंग का अभ्यास करते समय हाथों में नीली-पीली झंडियां पकड़कर वन, टू, थ्री की आवाज पर उन्हें ऊपर-नीचे, दाएं-बाएं करके लहराना और खाकी वर्दी पहनकर वह गले में दोरंगा रुमाल लटकाकर अभ्यास करना लेखक को बहुत अच्छा लगता था। उन्हें बिना गलती के अभ्यास पूरा करने पर पीटी साहब से मिलने वाली ‘शाबाश’ भी फौज के तमगों-सी किमती लगती थी।


7. लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुट्टियों में मिले काम को पूरा करने के लिए क्या-क्या योजनाएं बनाया करता था और उसे पूरा न कर पाने की स्थिति में किसकी भांति ‘बहादुर’ बनने की कल्पना करता था?

उत्तर

लेखक बचपन में गर्मियों की पूरी छुट्टियां खेलने-कूदने में निकाल देते थे। जब छुट्टियों का महीनाभर बचा होता था, तब अपने गृह कार्य की सुध लेते थे और अध्यापकों की मार के डर से बचे हुए छुट्टियों के दिनों के अनुसार काम का हिसाब लगाने लग जाते थे, जैसे- अगर हिसाब के मास्टर जी ने दो सौ सवाल दिए हैं तो दस सवाल रोज़ हल करने पर बीस दिन में पूरा काम हो जाएगा। फिर कुछ और दिन निकल जाने पर दुबारा हिसाब लगाते थे कि सवाल तो रोज पंद्रह भी निकाले जा सकते हैं। ऐसा सोचते-सोचते छुट्टियां खत्म होने लग जाती थी। तब वे अपने उन बहादुर सहपाठियों की तरह सोचने लगते थे, जो मास्टरों की पिटाई गृहकार्य करने से ज्यादा ‘सस्ता सौदा’ समझते थे। वे अपने सहपाठी ‘ओमा’ को ऐसे समय में अपना नेता मानते थे और उसी से प्रेरित होकर बहादुर बनने का प्रयास करते थे।


8. पाठ में वर्णित घटनाओं के आधार पर पीटी सर की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

उत्तर

उत्तराखंड:- पाठ में वर्णित घटनाओं के आधार पर पीटी सर की निम्नलिखित चारित्रिक विशेषताएं हमारे सामने आई है-

  • कठोर व सख्त व्यवहार – पीटी साहब स्कूल के सबसे सख्त अध्यापक थे। उनके डर से सभी छात्र कांप उठते थे।
  • अनुशासनप्रिय – वे छोटी-से-छोटी गलती पर भी कड़ा दंड देते थे और विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए उन्हें कठोर सजा देते थे।
  • आदर्शवादी – हेडमास्टर शर्मा जी के गुस्सा करने पर भी उन्होंने अपने व्यवहार व उसूलों में बदलाव लाना स्वीकार नहीं किया और हेडमास्टर शर्मा जी के फैसले को खुशी-खुशी स्वीकार किया।
  • स्वाभिमानी – हेडमास्टर शर्मा जी द्वारा मुअत्तल किए जाने पर भी उन्हें कोई पछतावा नहीं था, वे आराम से अपने चौबारे में रह रहे थे।
  • कुशल अध्यापक – वे छात्रों से मुश्किल चीजें याद करने को कहते थे और मुंहज़बानी सुनते थे। छात्र भी उनके भय और उनकी मार से बचने के लिए मेहनत करके मुश्किल चीजें भी याद कर लेते थे।
  • अच्छे प्रशिक्षक – वे छात्रों को स्काउटिंग परेड का अभ्यास करवाते थे और तब तक अभ्यास करवाते रहते थे, जब तक की सभी छात्र बिना किसी गलती के अभ्यास पूरा नहीं कर लेते थे।
  • कोमलहृदयी – उन्होंने दो तोते पाल रखे थे। वे उनका बहुत ख्याल रखते थे, रोज उन्हें अपने हाथों से बादाम खिलाते थे और उनसे प्यार से बातें करते थे। यह उनके हृदय की कोमलता को दर्शाता है।


9. विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में अपनाई गई युक्तियों और वर्तमान में स्वीकृति मान्यताओं के संबंध में अपने विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर

प्रस्तुत पाठ के अनुसार हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि लेखक के बचपन में स्कूलों में अनुशासन बनाए रखने के लिए सख्ती व कठोर सज़ा का माध्यम अपनाया जाता था। छात्र अपने अध्यापकों के डर से कांपते थे। उनके अध्यापकों द्वारा मिले दंड खाल खींचने के मुहावरे का प्रत्यक्ष रुप होते थे। लेकिन आज के समय में इसे बिल्कुल गलत माना जाता है क्योंकि शारीरिक यातनाओं से कई कमजोर-हृदयी छात्र लाइलाज बीमारियों, मानसिक रोगों, आदि का शिकार हो जाते हैं, जिससे उनका पूरा जीवन नष्ट हो जाता है। किसी भी प्रकार का शारीरिक व मानसिक शोषण बच्चों के साथ अन्याय है। बच्चों के बालमन को सही राह दिखाने के लिए एक सभ्य और प्रेमयुक्त तरीका अपनाना चाहिए। बुरी आदतें छोड़ने के लिए उन्हें पुरस्कार का लालच भी दिया जा सकता है।


10. बचपन की यादें मन को गुदगुदाने वाली होती हैं विशेषकर स्कूली दिनों की। अपने अब तक के स्कूली जीवन की खट्टी-मीठी यादों को लिखिए।

उत्तर

छात्र अपने स्कूली जीवन की यादों का वर्णन करे।


11. प्रायः अभिभावक बच्चों को खेल-कूद में ज़्यादा रुचि लेने पर रोकते हैं और समय बर्बाद न करने की नसीहत देते हैं। बताइए-

(क) खेल आपके लिए क्यों जरूरी हैं?

(ख) आप कौन से ऐसे नियम-कायदों को अपनाएंगे जिससे अभिभावकों को आपके खेल पर आपत्ति न हो?

उत्तर

(क) खेलों का हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। खेलों से बच्चों, बड़ों, सभी का शारीरिक व मानसिक विकास होता है। खेल एक तरह का व्यायाम और योग ही है, जिससे शरीर स्वस्थ और तंदुरुस्त रहता है। विभिन्न खेल-आयोजनों के कारण समाज में आपसी भाईचारा, सद्भावना, सांप्रदायिकता, आदि बने रहते हैं। बच्चे मिल-जुलकर खेल खेलने से व्यवहारिकता सीखते हैं।

(ख) हम निम्नलिखित नियम-कायदों को अपनाएंगे जिससे किसी को भी हमारे खेल पर आपत्ति नहीं होगी-

  • निश्चित समय-सारणी बनाकर खेलने-कूदने का समय सीमित करके
  • खेलों के दौरान लड़ाई-झगड़ा न करके
  • मिल-जुलकर प्रेमपूर्वक खेल खेलकर
  • मन लगाकर पढ़ाई करके
  • पढ़ाई को उचित समय देकर
  • अपने साथियों के साथ बुरी आदतों व गलत चीज़ों से दूर रहकर
  • अपने खान-पान का सही ध्यान रखकर
  • बड़ों का कहना मानकर और उन्हें उचित आदर-सम्मान देकर
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